ओमकार सन्देश
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
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नमः शिवाय
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नमः शिवाय
सृष्टि में एकमात्र पूर्ण पुरुष भगवान शिव हैं, और सर्वोच्च शक्ति माता पार्वती। उनका विवाह, जैसे प्रकृति और पुरूष का संयोग। शिवभक्ति का आज सर्वश्रेष्ठ अवसर है। हालांकि भोले भंडारी इतने उदारमना हैं, कि सच्चे मन से उनका ध्यान कर, शिवलिंग पर पत्र, पुष्प, जल समर्पित कर दिए जाएं तो ही प्रसन्न हो जाते हैं, इसीलिए वे जनमानस के इष्ट हैं। उनकी भक्ति सरल है, निर्मल मन और पूर्ण समर्पण उसका एकमात्र विधान है, तभी तो भूत प्रेत सब उनके गण हैं।
शिव तत्व को समझना अत्यंत रोचक और दुरूह कार्य है। शिव संपूर्ण हैं, वे आदियोगी हैं, अद्वैत हैं। हर विपरीत ध्रुव पर वे आसन्न हैं, जैसे वे अवधूत हैं परंतु जगत के स्वामी भी, पालक भी हैं और संहारक भी। अत्यधिक भोले हैं और उतने ही निष्ठुर भी। दरअसल वे निरपेक्ष हैं, सदैव ध्यानमग्न हैं। उन्हें ना भक्ति प्रभावित करती है ना उपेक्षा। वे हर ओर हैं, और कहीं भी नहीं। शिव तत्व का बोध और उसकी प्राप्ति ही वास्तव में मोक्ष है।
भगवान शिव की स्तुति कई रूपों में की जाती है, जिनमे 'श्री शिव पंचाक्षर स्त्रोत' अत्यंत मनोहारी है। यह स्त्रोत सुनकर, एक अद्भुत अनुभूति होती है, शांति और गहराई का भाव आता है। इस स्तोत्र की रचना स्वयं पूज्य आदि शंकराचार्य ने की थी। इसे पंचाक्षर स्त्रोत इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें पांच श्लोक हैं, जो कि शिव भक्ति के मूल मंत्र अर्थात पंचाक्षर मंत्र 'नमः शिवाय' के प्रथम अक्षरों से शुरू होते हैं। यदि पांचों श्लोकों के प्रथम अक्षरों को लिया जाए तो 'नमः शिवाय' बनता है। स्त्रोत के हर श्लोक में भगवान शिव की स्तुति है, अतः यह सम्पूर्ण स्त्रोत शिवस्वरूप है।
स्त्रोत उन रचनाओं को कहा जाता है, जिनमे संस्कृत भाषा में लिखी गई भगवान की काव्यात्मक स्तुति होती है। सभी देवी देवताओं के विभिन्न विद्वानों द्वारा रचे गए स्त्रोत हमें मिलते हैं। जैसे परम शिवभक्त रावण द्वारा रचित 'शिव तांडव स्त्रोत' जो एक अत्यंत तेजोमय एवं प्रभावशाली स्त्रोत है। 'शिव तांडव स्त्रोत' का श्रवण शरीर एवं मन में असीमित ऊर्जा का संचार करता है, वहीं 'शिव पंचाक्षर स्त्रोत' सुनने से असीम शांति अनुभव होती है।
आज से करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व अवतरित, श्री आदि शंकराचार्य धर्मचक्रप्रवर्तक हैं। वर्तमान सनातन धर्म का जो स्वरूप है, उसकी पुनः स्थापना में उनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। मात्र 8 वर्ष की आयु में वे वेदज्ञ हो गए थे। उन्होंने अनेक ग्रँथ लिखे जिनमे उपनिषदों आदि के भाष्य विशेष हैं। वे केवल 32 वर्ष जीवित रहे, परंतु इस अल्पावधि में देशाटन कर भारत के चार कोनों में पीठों की स्थापना की। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों का चिन्हांकन भी उनके द्वारा किया गया।
पावन नगरी ओंकारेश्वर में मान्धाता पर्वत पर आदि शंकराचार्य गुफा स्थित हैं, जहां उन्होंने तपस्या की थी। संभव है कि इस दिव्य स्त्रोत की रचना ओंकारेश्वर प्रवास के दौरान ही की गई हो। आज के पवित्र अवसर पर आप सब भी "आदि शंकराचार्य गुफा" का दर्शन करें एवं पंचाक्षर स्त्रोत सुनकर या पाठ कर आनंद की अनुभूति लें।
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