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नर्मदा नदी
नर्मदा जिसे रेवा या मेकल कन्या के नाम से भी जाना जाता है. मध्य भारत कि सबसे बड़ी एवं भारतीय उपमहाद्वीप कि पांचवी सबसे बड़ी नदी है. यह पूर्णतः भारत में बहने वाली गंगा एवं गोदावरी के बाद तीसरी सबसे बड़ी नदी है. यह उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के बीच पारम्परि विभाजन रेखा के रूप में पश्चिम दिशा कि ओर १३१२ किलोमीटर तक बहती है एवं गुजरात में भरूच नगर के ३० किलोमीटर पश्चिम में अरब सागर में खम्बात कि खाड़ी में गिरती है. यह पूर्व से पश्चिम कि ओर बहने वाली भारत कि ३ सबसे बड़ी नदियों में शामिल है जिनमें अन्य २ नदियाँ ताप्ती एवं माही हैं. यह एकमात्र नदी है जो सतपुरा एवं विन्ध्य पर्वत श्रंखलाओं के मध्य घाटी में पश्चिम दिशा की ओर बहती है. अपने प्रवाह के दौरान ये मध्य प्रदेश में १०७७ किलोमीटर महाराष्ट्र में ३५ किलोमीटर, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र के सीमा पर ३९ किलोमीटर, मध्यप्रदेश एवं गुजरात की सीमा एवं गुजरात में १६१ किलोमीटर बहती है.
धार्मिक महत्व
गंगा, यमुना, गोदावरी एवं कावेरी के साथ नर्मदा भारत कि ५ सबसे पवित्र नदियों में शामिल है. एवं ऐसा माना जाता है कि इनमें से किसी में भी स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है. पुराणों के अनुसार एक समय गंगा नदी करोडो लोगों के स्नान के कारण प्रदूषित हो गई थी अतः स्वयं कि शुद्धि के लिए वह एक काली गाय का रूप लेकर नर्मदा नदी के पवित्र जल में स्नान करने आई थी. पुराणों में ऐसा भी कहा गया है कि नर्मदा नदी गंगा नदी से भी अधिक प्राचीन है. नर्मदा नदी कि पवित्रता एवं महात्म्य का एक उदाहरण यह भी है कि यह एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है. नर्मदा परिक्रमा किसी भी तीर्थ यात्रा कि तुलना में सर्वाधिक कठिन चुनौतीपूर्ण एवं पवित्र कार्य माना जाता है. साधू संत एवं तीर्थ यात्री भरूच से पदयात्रा प्रारंभ करते हैं एवं नदी के साथ चलते हुए मध्यप्रदेश में अमरकंटक में नदी के उद्गम स्थल तक जाते हैं एवं दूसरी दिशा से वापस भरूच तक जाते हैं. यह कुल २६०० किलोमीटर लंबी यात्रा है. इस मार्ग में पड़ने वाला एकमात्र ज्योतिर्लिंग श्री ओंकारेश्वर है.
ओंकारेश्वर में नर्मदा
ओंकारेश्वर में भक्त एवं पुजारी नर्मदा जी कि आरती करते हैं एवं प्रतिदिन संध्याकाल में नदी में दीपक प्रवाहित करते हैं, इसे दीपदान कहते हैं. नर्मदा जयंती एवं अन्य पर्वों पर यह कार्य वृहद स्तर पर किया जाता है. यहाँ नर्मदा दो भागों में बंटकर एक द्वीप का निर्माण करती हैं जिसे पुराणों में वैदूर्यमणि पर्वत कहा जाता है, जहाँ पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है. इस द्वीप के उत्तर में कावेरी नदी मानी जाती है. जो कि चौड़ी एवं उथली है तथा उत्तर में नर्मदा है जो संकरी एवं गहरी है.
संगम
नर्मदा एवं कावेरी नदी का संगम ओंकारेश्वर में होता है. दोनों नदिया मान्धाता द्वीप के इर्द गिर्द बहती हैं एवं यहाँ मिलती हैं. मुख्य शहर से मंदिर कि और देखें तो यह बाएं और है. संगम दो नदियों के मिलने का स्थल होने के कारन पवित्र माना जाता है.
भक्तगण पैदल अथवा नाव द्वारा संगम तक जाते हैं यह परिक्रमापथ में भी पड़ता है. ऐसा माना जाता है कि संगम में स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है.
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